शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

मिर्ज़ापुर

आदरणीय डॉ. राजनाथ सिंह जी 
सादर अभिवादन 

पत्र उसे ही लिखा जाता है, जिससे हम परिचित हों और इस लिहाज़ से मेरा आपको पत्र लिखना बनता ही नहीं! लेकिन आपको भी कहाँ मालूम होगा कि मेरे और आपके बीच एक कड़ी रही है....आज नहीं लगभग तीन दशक पूर्व। समय का अनुमान भर ही है ये क्योंकि बचपन की बातें हैं इसलिए वर्ष ठीक से याद नहीं। लेकिन स्मृतियाँ कहाँ उम्र भर साथ छोड़ती हैं!

मिर्ज़ापुर मेरी स्मृतियों के पन्नों में सबसे चटख़ रंग भरता है। इस शहर में भी यहाँ का 'के. बी. पोस्टग्रेजुएट कॉलेज' मेरे दिल के बेहद क़रीब सदैव ही रहा है और मैं अब भी वहाँ एक बार और जाने की उम्मीद संजोये बैठी हूँ। यहाँ के बड़े-बड़े मैदानों में मेरे बचपन ने छोटे-छोटे डग भरना प्रारंभ किया था, यहीं के ऊँचे सुर्ख़ गुलमोहर के वृक्षों के नीचे मेरी उमंगें थक जाने पर कुछ पल साँस ले पुन: परवान चढ़तीं थीं, यहाँ के हर लहलहाते पौधे ने मुझे प्रकृति प्रेमी बनाने की पहली नींव रखी और इसी कॉलेज के बीचों-बीच बने सुंदर तालाब में मेरे स्वप्नों के कमल खिलना शुरू हुए थे। कुल मिलाकर मेरे बचपन की हर स्मृति यहाँ की हवाओं में दर्ज़ रही है। 

पूरे यक़ीन के साथ तो नहीं कह सकती कि आप उन्हें जानते होंगे या नहीं, पर मेरे नानाजी डॉ. श्याम सिंह जैन यहाँ के प्रथम प्राचार्य थे (शायद 1957 से) नानाजी का घर कॉलेज कैंपस में ही था। छोटी उम्र थी, इसलिए मैं और मेरा भाई मनीष पूरे कैंपस को ही अपना घर समझ कूदते-फांदते थे। कॉलेज के मेन गेट वाली रोड पर हेल्पर्स (ठाकुर, दुर्गा) के जो एक कमरे के घर थे न, वहाँ भी हम चक्कर मार आते थे। घर में मामा, मौसियों, नानाजी, नानीजी के साथ ख़ूब मस्ती भी करते थे। मुझे ऐसा लग रहा है कि आप भी उन्हीं दिनों इस कॉलेज से जुड़े थे। नानाजी रिटायरमेंट तक यहाँ प्राचार्य के तौर पर पदस्थ थे। एक बार गर्मियों की छुट्टियों का थोड़ा-सा याद है मुझे, आप आदरणीय अटल जी के साथ आये थे। उस समय हम लोग घर के बाहर तीन-चार सीढ़ियों के दोनों ओर बनी फिसलपट्टियों पर फ़िसल रहे थे। समर मामा से भी आपका नाम सुना है। 

आज दोपहर NDTV में रवीश कुमार के कार्यक्रम में, मिर्ज़ापुर के इसी कॉलेज की दुर्दशा देखकर मन टूट-सा गया। नाना जी की भी बहुत याद आई। आज वो होते, तो कितना दुःखी होते। उनकी आत्मा भी कितना कष्ट पा रही होगी। इस कॉलेज को सर्वश्रेष्ठ बनाने में उन्होंने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी। सबके आदर्श थे वो।
मेरा प्रश्न यही है कि समय के साथ जब हर जगह विकास की बात है तो ऐसे में शिक्षा के मंदिर का यह हाल क्यों?
यह सच है कि मैं इस ओर आपका ध्यान इसलिए आकृष्ट करना चाहती हूँ क्योंकि इस स्थान से मेरा विशेष लगाव है। आपने भी इस कॉलेज को अपनी उत्कृष्ट सेवाएँ दी हैं। लेकिन सर, सुधार तो हर जगह होना चाहिए। हर शहर, हर गाँव, हर गली के मोड़ पर किसी-न-किसी देशवासी की यादें बसती हैं। एक आम भारतीय की यही तो धरोहर हैं। हम विरासतों को संजोने की बात करते हैं, आगे जाने की बात करते हैं, लेकिन जो हमारे पास है....उसे कौन बचाएगा?? शिक्षा का बढ़ता स्तर ही तो अच्छे नागरिकों को जन्म देगा। 
गाँधीवादी हूँ और आशावान भी
इसलिए पूरी उम्मीद है कि कुछ सकारात्मक उत्तर अवश्य मिलेगा।
*रवीश कुमार जी और उनकी टीम को मेरा और मेरी मम्मी नलिनी जैन की तरफ से विशेष धन्यवाद!

सादर 
प्रीति 'अज्ञात' 

कार्यक्रम का वीडियो लिंक-
https://www.youtube.com/watch?v=77TWz-kqMLo

मेरे और उस शहर के रिश्ते की कहानी बयां करती कुछ लिंक्स -
  
http://preetiagyaat.blogspot.in/2016/03/blog-post_3.html
http://preetiagyaat.blogspot.in/2015/10/blog-post.html


http://agyaatpreeti.blogspot.in/2015/06/blog-post_81.html

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